हे मानव ! तेरा जनम है श्रेष्ठ जनम।
तू कर दिखाया कितना कुछ।
सोच सोच कर कांति चूर।
अपने घेरे में बैठ तु, मचा रहा है निरव क्रांति ।
खो दिया है अपना चैन-शांति ।।
तेरे भीतर ठूँस ठूँस कर भरा है,
कितनी अनगिनत पद्धति यांत्रिक ।।
विश्व दुनिया को जीतने के लिए,
चल रहा है तेरा ही दुर्गम अभियान ।
क्योंकि तू है मानव , तू है महान ।।
अरे मूर्ख , देख पहले।
तेरे भीतर जो चोर है बैठा।
जो श्रांति और क्लांति का है कर्ता ।
चूस रहा है जो कांति का ख़ून और जीवन का धुन ।।
निकाल दे उसे पहले, मत सोच, सोच मत।
दूर कर दे उसे तन से , मन से और भंगुर समाज से ।।
जिस दुनिया की अग्रगति के लिए तूने ये जंग रचा,
मानवता का अस्तित्व कहाँ तक है बचा ?
हे मानव, श्रांति से नही, शांति से सजा दे तेरा अभियान ।
‘मानवता का महत्व ’ कितना है मूल्यवान ,
समझा दे सबको।
गाँव से नुक्कर तक,
शहर से नगर तक ।।