एक दिन एक भैंस घास चरते चरते एक गहन वन में चली गयी । वहाँ एक हिरणी से उसकी भेंट हुई ।
गिरनी ने भैंस से पूछा , “ तुम यहाँ कैसे आयी ? और क्यों आयी ? ”
भैंस ने कहा , “ मैं घास चरते चरते यहाँ आ गयी । यह कौन सी जगह है ? ”
हिरणी बोली , “ यह जंगल है, यहाँ तरह – तरह के जंगली, हिंस्र जानवर हैं । यहाँ से भाग निकलना बहुत ही कठिन काम है । जल्दी भागो । ”
उसकी बात सुनकर भैंस ने कहा , “ लगता है तुम तृण भोजी हो। तुम भी क्या मेरी तरह भटकते – भटकते यहाँ आ गयी हो ?
तो तुम भी चलो मेरे साथ । नहीं तो जानवर तुम्हें भी नोच खाएँगे । हम तृण भोजी एक साथ रहेंगे । “
उसकी बात सुनकर हिरणी ने कहा , “ मैं तुम्हारे साथ नही जा सकती । मैं तो अरण्य की शोभा हूँ । अगर मैं ही चली जाऊँ तो अरण्य की चंचलता ख़त्म हो जाएगी। मैं जब लता – गुल्म में आबद्ध हो जाती हूँ , तब वे भी मेरे साथ क्रीड़ा करते हैं ।
कोई अगर हमारे पीछे लग जाए, तो अरण्य में हल – चल मच जाती है । ”
“लेकिन तुम्हारे जीवन में भी तो ख़तरा है !?”
हिरणी ने कहा , “ जीवन है तो जोखिम है, बिना जोखिम के ज़िंदा रहना का आनंद कहाँ ? मैं यहाँ की ख़ुशबू हूँ, यहाँ का
आनंद हूँ। मैं यहाँ का जीवन हूँ, यौवन हूँ। मैं यहाँ से कैसे जाऊँ । तुम जल्दी जाओ। गोशाला में तुम्हारे बछरे दूध के लिए तरस रहे होंगे । सावधानी से जाओ और अपना कर्तव्य निभाओ । मैं यहीं हूँ । अगर कोई ख़तरा हो, तो मैं, अपनी जान देकर भी तुम्हारी रक्षा करूँगी। ”
“ दोनो बिछर गए परंतु मित्रता बिछरी नही ।। ”
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